राजेश प्रताप सिंह का एक काम निश्वार्थ भाव बच्चों को निशुल्क बास्केटबाल खेल का प्रशिक्षण देना ।
राजेश प्रताप सिंह बास्केटबाल को देखा अपने बड़े भाई धनेश प्रताप सिंह जी पी. जी. कालेज अम्बिकापूर के बास्केटबॉल टीम खिलाड़ी हुआ।तब राजेश प्रताप सिंह 10 वीं क्क्षा में पढ़ने थे।उस वक्त खेल का नाम भी जानते थे। जब उनके भाई खेल कर घर आते थे तब बास्केटबाल को लेकर छुना व देखने का नजदीक से मोका मिला। धीरे-धीरे बास्केटबाल बाल को लेकर कालेज के बास्केटबाल ग्राउंड जाया करते थे। इस प्रकार बास्केटबाल खेल का धीरे-धीरे अभ्यास करने लगे। बड़े भाई और अन्य भईया लोगों खेलते देखते हुए बास्केटबाल खेल को खेलना सिखे।
राजेश प्रताप सिंह 10 वीं पास कर जब 11 वीं क्क्षा पढ़ने के लिए मल्टीपरपज स्कूल में नाम लिखवाने गये तो, दाखिला बंद हो गया था। स्कुल की दाखिला पुरा हो चुका था। इस तरह दाखिला के लिए चकर लगाते हुए एक महिना हो चुका था, देर होने के कारण और मुश्किल बढने लगा। उस वक्त मल्टीपरपज स्कूल के प्राचार्य के पद पर श्री आन्नद दासगुप्ता जी हुआ करते थे।
कुछ दीन बित जाने के बाद राजेश प्रताप सिंह के बड़े भाई के दोस्त मिलकर बताया कि स्कुल के प्राचार्य से जाकर मिलना और बोलना की खिलाड़ी हूँ,। राजेश प्रताप सिंह अपने बड़े भईया के साथ स्कूल के प्रचार्य पास गये और बोले कि” मैं एक खिलाड़ी हूँ” प्रचार्य आन्नद दासगुप्ता जी एक खेल प्रेमी हुआ करते थे।. जब प्रचार्य ने राजेश प्रताप सिंह से पुछे की तुम खिलाड़ी हो…..? राजेश प्रताप सिंह ने ज्वाब दिया की हाँ….. मैं एक बास खिलाड़ी हूँ।
प्रचार्य ने जब सुना की बास्केटबॉल खिलाडी है तुरन्त ही बोले कि स्कुल में बास्केटबाल खेल का टीम बनाओगे…. राजेश प्रताप सिंह ने हाँ, बोले और 11वीं क्या में नाम लिखाया और कृषि संकाय विषय मिला।
शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय अम्बिकापूर 11 वीं पढ़ते हुए स्कूल की टीम बनाया और स्वमं ही उस टीम के कप्तान बनकर भोपाल, मध्यप्रदेश खेलने गए, उसके बाद 12 वीं क्क्षा में पुनः कप्तानी करते हुए ग्वालियर खेलने गये। तब का खेलने के लिए टीम बनाने वाला राजेश प्रताप सिंह और आज का राष्ट्रीय कोच राजेश प्रताप सिंह ।
Leave a Reply